मेरी कुछ पुरानी यादों में से एक सबसे पुरानी घटना, जो अब तक मुझे याद है जब मैं तीन साल का था| मैं चम्मच से मिट्टी में खेल रहा था | तभी एक लड़की आयी, जो मुझे बहुत बड़ी लग रही थी पर वो महज पांच वर्ष की थी | उसने मेरा चम्मच ले लिया और अपने घर भागी | मैं अपनी मम्मी से एक और चम्मच मांगा और फिर से खेलने लगा| वह लड़की वापस आयी और फिर से मेरा चम्मच ले ली| मुझे एक और चम्मच अपनी मम्मी से मिला | मैं फिर से खेलने लगा| मेरे ख्याल से आप जानते है कि क्या हुआ होगा|

वो नन्ही बच्ची मेरा तीसरा चम्मच भी ले ली| इस बार मैंने उसका पीछा किया | वो अपने घर में जल्दी से घुस गई| मैं उनका दरवाजा खटखटाया पर तुरंत मेरी मम्मी वहां आयी और मुझे घर वापस ले गई| मैं बहुत निराश था और रो रहा था | उसने मेरे सारे चम्मच ले लिये पर मेरी मम्मी बोली- ”कोई बात नहीं| सब ठीक होगा, आओ तुम्हें नहलाती हूँ फिर हम मीठी सी झपकी लेंगे| नहाने के बाद मेरी मम्मी मेरे लिये कुछ कहानियां पढ़ी और जानते हैं ? वे बिलकुल सही थी | मैं ठीक था और अच्छा महसूस कर रहा था |
मेरा बचपन, स्कूल जाने के पहले कुछ ही ऐसा था | हर रोज़ मैं और मम्मी साथ-साथ किताब पढ़ते थे| इसलिए .जब मैं दो साल का था तो मैं भी पढ़ सकता था | जब मैं केजी कक्षा में पहुँचा, मैं और भी बहुत सी किताबें पढ़ सकता था | मुझे दिनभर किताब पढ़ता देख मेरी शिक्षिका ने सोचा कि शायद मुझे कोई मानसिक परेशानी है |

एक दिन उन्होंने मेरे मम्मी-पप्पा को एक चिट्टी भेजी- “आपके बेटे को किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाइए वो दिनभर किताबों को देखता रहता है| मुझे मालूम है कि उसे कुछ भी समझ नहीं आ आता है|” मेरे मम्मी पापा मुझे एक डॉक्टर को दिखाए | डॉक्टर ने कुछ टेस्ट करने के बाद कहा- “सब ठीक है, वो पुस्तक को देखता नहीं, वो उसे पढ़ता है|” उसके बाद मैं कभी कभी स्कूल की कुछ विशेष कक्षा में जाता था| मेरे शिक्षकों के साथ मेरा संबंध हमेशा अच्छा ही रहा|
जब मैं पांच साल का था तब एक बार पूरी गर्मी मैं अपने मम्मी-पापा के साथ मेरे नाना-नानी के घर में रहा| वे एक गाँव में रहते थे| उनके गाँव में एक पुस्तकालय था| वह पुस्तकालय इतना पास था कि मैं वहां अकेला जा सकता था | ( आज के समय में लोग सोचेंगे कि पांच साल का बच्चा बीस मिनट चलकर पुस्तकालय कैसे जा सकता है, पर 1975 का समय बहुत अलग और सुरक्षित था|) उन दिनों हर रोज वहाँ की लाइब्रेरियन बच्चों के लिए किताब पढ़ती थी | उन्होंने हमें “The Phantom Tollbooth” पढ़कर सुनाया और मुझे वो कहानी बहुत पसंद आयी |
इस कहानी में एक माईलो नाम का लड़का था, जो बहुत बोर हो रहा था| एक दिन उसके लिए एक पार्सल आया | उस पार्सल में कार्डबोर्ड की एक फोल्डिंग गाड़ी और एक टोलबूथ था | वह लड़का उस गाड़ी में बैठा और जैसे ही वह टोलबूथ को पार किया वैसे ही वो दूसरी दुनिया में चला गया | उसके साथ बहुत सी रोमाचंक घटनाएँ हुई| वह चलते चलते एक अजीब जगह पहुंचा | उस जगह में बहुत कोहरा था और वहाँ कुछ अजीब लोग रहते थे | वे बहुत आलसी और उदास थे |
वे कुछ नहीं करना चाहते थे| उन्हें देखकर लड़का भी उदास हो गया| उसने कुछ लोगों से पूछा- इस जगह का नाम क्या है?” उन्होंने बताया- यह “उदासी” है| वह लड़का सोचा कि वह शायद हमेशा वहां रहेगा तभी वहां एक बड़ा कुत्ता आया| उसका नाम ‘टॉक’ था| कुत्ते के शरीर में एक तरफ घड़ी बनी हुई थी| उसने लड़के को कहा- मैं आपकी मदद करूँगा| लड़के ने कहा- “ मैं भ्रम में हूँ| कैसे इस ‘उदासी’ को छोड़ूं ? कुत्ता जिसका नाम ‘टॉक’ था बोला- आप ‘उदासी‘ में पहुँचे क्योंकि जब आप कार चला रहे थे आप कुछ भी नहीं सोच रहे थे| जब भी आप गाड़ी चलाते है आपको ध्यानपूर्वक सोचकर चलाना चाहिए| उसने ऐसा किया और’उदासी’ को छोड़ दिया |
यह कहानी एक प्रतीक है| बच्चे इस कहानी को पढ़ते है और सोचते है कि यह कहानी एक रोमांचक जगह के बारे में है पर असल में यह कहानी जीवन के बारे में है| यह बात उस समय से मुझे याद है| जब मैं लगभग ग्यारह -बारह साल का था मैंने देखा कि मेरी मम्मी और पापा दोनों बहुत शराब पीते थे| कभी कभी वो जोर से हँसते तो कभी जोर- जोर से झगड़ा करते थे| कई बार जब मैं स्कूल से घर पहुँचता था तो मैंने देखता था कि मेरे मम्मी शराब के नशे में हैं और रो रही हैं| साल दर साल वे दोनों और ज्यादा शराब पीने लग गये थे||
उस समय वास्तव में हमारे घर बहुत परेशानी थी पर बहुत साल पहले जब मेरी मम्मी ज्यादा शराब नहीं पीती थीं उन्होंने मुझे एक किताब उपहार में दी थी | जब जीवन में बहुत परेशानी है, किताब एक बहुत दिलचस्प चीज है| कभी-कभी मैं कहानी पढ़ता था| कभी मैंने वैज्ञानिक किताबें भी पढ़ी |
जब मेरे घर का माहौल अच्छा नहीं था तब स्कूल मुझे बहुत अच्छा लगता था| मुझे अपने शिक्षक बहुत अच्छे लगते थे| मैं हर साल और किताब पढ़ा | मेरे शिक्षक मेरे दोस्त बन गए थे| किताबों से मैंने एक अच्छा जीवन जीने के बारे में सीखा| मेरे लिए मेरे अध्यापक अच्छे जीवन का उदाहरण थे| जब भी मेरे पिता ने कुछ नस्लवादी चुटुकुले कहे मेरे अध्यापकों से मैंने नागरिक अधिकारों के आंदोलनों के बारे में सीखा| मैं अपने शिक्षकों के बहुत करीब था | मैं उनका सम्मान करता था और मुझे उन पर पूरा विश्वास था|
एक दिन मेरे अध्यापक ने मुझसे कहा- अगले सप्ताह कुछ छात्र एक वर्कशॉप में जायेंगे| यह वर्कशॉप ‘leadership and prevention of drug and alcohol abuse’ के बारे में होगा| आप उसमें भाग ले सकते है| मुझे बहुत शौक था इसलिए मैं वहाँ गया|

उस वर्कशॉप का एक-एक पल मुझे याद है| हम एक फिल्म देख रहे थे| उसमें एक लड़की ठीक मेरे उम्र की थी और उसका भी एक छोटा भाई था | उनके पिताजी उनके साथ नहीं रहते थे और उनकी मम्मी हमेशा शराब के नशे में रहती थी | हमेशा उनकी मम्मी अजीब हरकत करती थी | कभी-कभी वो चिल्लाती थी, कभी वो लड़ाई करती थीं| मेरे मम्मी और पापा ऐसे ही थे| फिल्म देखने से पहले मैं सोचता था कि सभी मम्मी-पापा ऐसे ही होते है| यह सामान्य बात है पर फिल्म देखने के बाद हमारे अध्यापक ने कहा- “कितनी ख़राब बात है न ? यह सामान्य नहीं है पर कुछ बच्चों का जीवन ऐसा होता है|” मैंने मन ही मन कहा- ”हाँ! सर मेरा जीवन भी ऐसा ही है|”
उस समय से मैं समझ गया कि मेरे माता-पिता का व्यवहार असामान्य है| अब मैं ज्यादा से ज्यादा समय घर के बाहर बिताता था| स्कूल में पढ़ते हुए मैंने नौकरियां की और एक किराये के घर में रहने लगा| मेरा जीवन पूरी तरह से अच्छा नहीं था| यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए मैंने शराब पीना शुरू कर दिया था| मुझे शराब पीना पसंद था क्योंकि मैं थोड़ा संकोची प्रवृत्ति का था पर जब भी मैं शराब पीता था मुझे कोई झिझक महसूस नहीं होती थी| मैं अपने दोस्तों के साथ कुछ रोमांचक खेल खेलता था, पर जब मैं बीस साल का हुआ मैं बहुत ज्यादा शराब पीने लगा था| एक दिन मैं ऑनलाइन एक बहुत अच्छी महिला ‘सेज’ से मिला | कुछ हफ़्तों की बातचीत के बाद हम दोनों एक दूसरे के करीब आ गए| हम दोनों अलग-अलग शहर में रहते थे| एक रात मैं अपने दोस्तों के साथ बहुत ज्यादा शराब पीया| बाद में मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई | मैंने सेज को कॉल किया और सेज ने मुझे कहा कि – तुम मुझे चुनो या शराब को | मेरा निर्णय साफ़ था मैंने कहा – “तुम”

सब से पहले यह नयी आदत कठिन थी क्योंकि सफ्ताह के अंत में दोस्तों के साथ शराब पीकर पार्टी करने की मेरी आदत थी| मेरे शराब को पूरी तरह से छोड़ने के बाद मेरे दोस्त मुझसे पूछते थे- शराब नहीं पियोगे तो हमारे साथ जाकर क्या करोगे? सेज अब उस टॉक की तरह थी जो माईलो से मिली थी| मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं माईलो की तरह ही मैं ‘उदासी’ नामक जगह में था और सेज ने मुझसे कहा- “आप यहाँ हैं क्योंकि आप सोच नहीं रहे हैं | यदि आप ‘उदासी’ से जाना चाहते है तो ध्यान से सोचो” कुछ दिनों बाद सेज मेरे पास आयी और मेरे साथ रहने लगी| हम साथ मिलकर एक नयी दिनचर्या बनाये | इस दिनचर्या में हमने किताब पढ़ना शमिल किया | कभी-कभी हम किताब पढ़कर एक दूसरे को सुनाया भी करते थे|
तीस साल से मैं और सेज साथ साथ है| तीन साल पहले मैंने अपने एक पैर में एक टैटू बनवाया | यह टैटू माईलो के साथ घड़ी वाले कुत्ते टॉक का चित्र है| यह टैटू सेज, मेरे शिक्षक, मेरे लाइब्रेरियन, और मेरी प्यारी मम्मी को समर्पित है| ये सभी लोग मेरे लिए टॉक जैसे हैं | जब भी मैं कही खोया तो इन सभी ने मुझे बताया- “ सोचो, ध्यान से सोचो और सब ठीक हो जायेगा |

आपने तो दिल जीतने वाली कहानी लिख दी और वो भी हिंदी मे। कमाल की मिठास है आपके शब्दों में। इतने सरल शब्दों मे आपने गहरी बाते कह दी। बहुत अच्छा लगा पढ़कर। लिखते रहिये।
बहुत धन्यवाद ! मैं बहत खुश हूँ |
बहुत ही अच्छा लगा. It was good to read your post Todd. We were in New Delhi from 1971 to 1979 and even studied Social studies in Hindi. It has been a long time since I have read Hindi books. One of our relatives is a Bengali. We talk to each other at least twice a month and in Hindi. I am glad I can speak the language.
Thanks for reading! I can’t imagine how different New Delhi was in those days. Watching movies from that time (Chashme Baddoor, Chupke Chupke) make cities look so much more peaceful and quiet. I love them today but how different they look!
लाजवाब कहानी लिखी
बहुत धन्यवाद !
बहुर सुंदर संस्मरण |